Genaral Studies

बुधवार, 19 मार्च 2025

शिक्षा का अधोमुखी निस्यंदन सिद्धान्त, 1854 का चार्ल्स वुड डिस्पैच, हंटर कमीशन (1882-83)

Pariksha Pointer

 

  • "शिक्षा के अधोमुखी निस्पंदन सिद्धान्त" का प्रतिपादन लार्ड ऑकलैण्ड द्वारा किया गया।
  • मैकाले ने भी इसी सिद्धान्त पर कार्य किया था, लेकिन यह नीति सरकारी तौर पर ऑकलैण्ड के समय में प्रभावशाली हुई।
  • शिक्षा के अधोमुखी निस्यदन सिद्धान्त का प्रतिपादन इस उद्देश्य से किया गया कि सर्वप्रथम उच्च वर्ग को शिक्षित किया जाय, इस वर्ग के शिक्षित होने पर छनछन कर शिक्षा का प्रभाव जनसाधारण तक पहुंचेगा।

  • शिक्षा के प्रसार का दूसरा चरण लार्ड डलहौजी के समय में शुरु हुआ। 
  • 1853 के चार्टर एक्ट में भारत में शिक्षा के विकास की जांच के लिए एक समिति के गठन का प्रावधान किया गया।
  • सर चार्ल्सवुड की अध्यक्षता में गठित समिति ने 1854 में भारत में भावी शिक्षा के लिए वृहत योजना तैयार की जिसमें अखिल भारतीय स्तर पर शिक्षा की नियामक पद्धति का गठन किया गया। 
  • चार्ल्स वुड के डिस्पैच को 'भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा' (Magna Carta) कहा गया।
  • 'डिस्पैच की प्रमुख सिफारिशें-

(i) सरकार पाश्चात्य शिक्षा, कला, दर्शन, विज्ञान और साहित्य का प्रसार करे।

(ii) उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो, लेकिन देशी भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जाय।

(iii) देशी भाषाई प्राथमिक पाठशालायें स्थापित की जायें और उनके ऊपर (जिला स्तर पर ) ऐंग्लो-वर्नेकुलर हाईस्कूल और सम्बंधित कालेज खोले जायें।

(iv) अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना। 

(v) महिला शिक्षा को प्रोत्साहन ।

(vi) शिक्षा क्षेत्र में निजी प्रयासों को प्रोत्साहन देने हेतु अनुदान सहायता की पद्धति चलाने की योजना ।

(vii) कंपनी के 5 प्रांत बंगाल, मद्रास, बम्बई, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में एक-एक शिक्षा विभाग के निर्माण की योजना जो 'लोक शिक्षा निदेशक' के अधीन कार्य करेगा।

(viii) लंदन विश्वविद्यालय के आधार पर कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में तीन विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना जिनका मुख्य कार्य परीक्षाएं संचलित करना हो।

  • वुड के डिस्पैच की सिफारिशों के प्रभाव में आने के बाद 'अधोमुखी निस्यदन सिद्धान्त' समाप्त हो गया।

  • लार्ड रिपन ने 1882 में डब्ल्यू डब्ल्यू० हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया जिसका उद्देश्य 1854 ई० के बाद शिक्षा के क्षेत्र में की गई प्रगति का मूल्यांकन करना था।
  • इस आयोग को प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के लिए भी उपाय सुझाने थे। आयोग की सिफारिशें इस प्रकार थीं-

(i) प्राथमिक शिक्षा को महत्व देते हुए कहा गया कि यह शिक्षा स्थानीय भाषा और उपयोगी विषयों में हो, इसका नियंत्रण जिला और नगर बोर्डों को सौंपा जाय।

(ii) उच्च शिक्षा संस्थाओं के संचालन से सरकार को हट जाना चाहिए, इसकी जगह पर सरकार को कॉलेजों के लिए वित्तीय सहायता तथा विशेष अनुदान निर्धारित करना चाहिए। 

(iii) हाई स्कूलों में प्रवेशिका परीक्षाओं के अतिरिक्त व्यापारिक एवं व्यावसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। 

(iv) आयोग ने प्रेसीडेंसी नगरों के अलावा अन्य स्थानों पर महिला शिक्षा हेतु पर्याप्त प्रबन्ध न होने पर खेद प्रकट किया और इसे बढ़ावा देने को कहा।

(v) शिक्षा के क्षेत्र में निजी प्रयत्नों को प्रोत्साहन

  • हंटर की संस्तुतियों पर सामान्यतया प्रांतीय सरकारों द्वारा कार्य किया गया था।

बुधवार, 29 जनवरी 2025

भारत में शिक्षा का विकास (ब्रिटिश काल में)

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  • 1813 ई० से पूर्व ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया गया।
  • 1813 ई० से पूर्व कुछ उदार अंग्रेजों, ईसाई मिशनरियों और उत्साही भारतीयों ने इस दिशा में प्रयास किया।
  • 1781 में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने 'कलकत्ता मदरसा' की स्थापना की, जिसमें फारसी और अरबी का अध्ययन होता था।
  • 1778 में वारेन हेस्टिंग्स के सहयोगी सर विलियम जोंस ने 'एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल' की स्थापना की जिसने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किये। 
  • 1791 ई० में ब्रिटिश रेजीडेण्ट जोनाथन डंकन द्वारा वाराणसी में हिन्दू कानून और दर्शन हेतु 'संस्कृत कालेज' की स्थापना की गई।
  • 1800 ई० में लार्ड वेलेजली द्वारा कम्पनी के असैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिए 'फोर्ट विलियम कालेज' की स्थापना की गई।
  • अंग्रेज धर्म प्रचारक एवं ईसाई मिशनरियों ने भारत में शिक्षा के प्रसार हेतु 'श्रीरामपुर' (कलकत्ता) को अपना केन्द्र बनाया तथा बाइबिल का 26 भाषाओं में अनुवाद किया।
  • 1820 ई० में डेविड हेयर नामक एक अंग्रेज ने कलकत्ता में 'विशप कालेज' की स्थापना की।
  • राजा राममोहन राय, राधाकांत देव, महाराज तेज सेन चंद्र, रायबहादुर, जयनारायण घोषाल आदि के प्रयासों से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ प्रगति हुई। 
  • राजा राममोहन राय, डेविड हेयर और सर हाईड ईस्ट ने मिलकर कलकत्ता में 'हिन्दू कालेज' की स्थापना की जो कालांतर में 'प्रेसीडेंसी कालेज' बना।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक प्रयास 1813 ई० में किया गया।
  • 1813 के चार्टर एक्ट में गवर्नर जनरल को अधिकार दिया गया कि वह एक लाख रुपये 'साहित्य के पुनरुद्धार और उन्नति के लिए और भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा अंग्रेजी प्रदेशों के वासियों में विज्ञान के आरंभ और उन्नति के लिए खर्च करें।' 

शिक्षा के माध्यम पर विवाद

  • लोक शिक्षा की सामान्य समिति के दस सदस्य भारत में शिक्षा के माध्यम के विषय में दो गुटों में विभाजित थे, जिसमें एक प्राच्य विद्या समर्थक दल तथा दूसरा आंग्ल शिक्षा समर्थक था।
  • प्राच्य शिक्षा समर्थक दल के नेता एच० टी० प्रिंसेज तथा एच० एच० विल्सन थे। 
  • प्राच्य विद्या समर्थकों का मानना था कि भारत में संस्कृत और अरबी के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाय और भारत में पाश्चात्य विज्ञान और ज्ञान का प्रसार इन्हीं भाषाओं में किया जाय।
  • दूसरी ओर आंग्ल शिक्षा समर्थक दल ने भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की वकालत की, वे भारत पर पश्चिमी मानदंडों को पूर्णतः आरोपित करना चाहते थे, उन्हें विश्वास था कि यदि अंग्रेजी भाषा को माध्यम के रूप में अपनाया गया तो आने वाले तीस वर्षों में बंगाल के सभ्य वर्ग में एक भी मूर्तिपूजक नहीं रहेगा। 
  • एक और गुट जो बम्बई में सक्रिय था के नेता मुनरो और एलफिंस्टन ने पाश्चात्य शिक्षा को स्थानीय देशी भाषा में देने की वकालत की।
  • प्राच्य, पाश्चात्य विवाद को उग्र होते देख तत्कालीन ब्रिटिश भारत के गवर्नर-जनरल विलियम बैटिंक ने अपने कौंसिल के विधि सदस्य लार्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति (बंगाल) का प्रधान नियुक्त कर उन्हें भाषा सम्बन्धी विवाद पर अपना विवरण पत्र प्रस्तुत करने को कहा।
  • 2 फरवरी 1835 को मैकाले ने अपना स्मरणार्थ लेख (Macaulay Minute) प्रस्तुत किया।
  • मैकाले ने भारतीय भाषा और साहित्य की तीखी आलोचना करते हुए आंग्ल भाषा एवं साहित्य की प्रशंसा की।
  • मैकाले के अनुसार "यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की आलमारी का एक तख्ता भारत और अरब के समस्त साहित्य से अधिक मूल्यवान है।”
  • मैकाले भारत में अंग्रेजी शिक्षा द्वारा एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहता था जो 'रक्त और रंग से भारतीय हो परन्तु उसकी प्रवृत्ति, विचार, नैतिक मापदण्ड और प्रज्ञा अंग्रेजों जैसा हो अर्थात वह ब्राउन रंग के अंग्रेजों का एक वर्ग चाहता था।'
  • 7 मार्च 1835 को गवर्नर-जनरल बैटिंक ने Macaulay Minute को स्वीकार कर आदेश दिया कि भविष्य में कंपनी की सरकार यूरोपीय साहित्य को अंग्रेजी माध्यम द्वारा उन्नत करे तथा सभी खर्च इसी उद्देश्य से किये जायें।

शिक्षा का अधोमुखी निस्यंदन सिद्धान्त, चार्ल्स वुड डिस्पैच (1854), हंटर कमीशन (1882-83)

सीमांत आदिवासियों के विद्रोह, खासी विद्रोह, अहोम विद्रोह, नागा विद्रोह

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खासी विद्रोह 

  • ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खासी और जयन्तिया पहाड़ी पर अधिकार के बाद ब्रह्मपुत्र और सिलहट को जोड़ने के लिए एक सड़क के निर्माण की योजना बनाई गई जिसके लिए अनेक अंग्रेज और बंगाली उस क्षेत्र में आये। 
  • खासी जनजाति के लोगों ने सरकार के हस्तक्षेप के विरुद्ध राजा वीर सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। 
  • 1833 के प्रारम्भ में खासी विद्रोह को कुचल दिया गया।

अहोम विद्रोह (1828 ई०)

  • 1828 में असम के अहोम अभिजात वर्ग के लोगों द्वारा अहोम विद्रोह किया गया।
  • अहोम अभिजात वर्ग के लोगों ने वर्मा युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के उनके क्षेत्र से वापस न जाने पर अपने नेता गोमधर कुंवर के नेतृत्व में विद्रोह किया। 
  • सरकार ने अहोम विद्रोह को शांत करने के लिए समझौता किया। 

नागा आंदोलन 

  • नागा आंदोलन की शुरुआत युवा रोंगमेई जदोनांग द्वारा की गई। 
  • इस आंदोलन का उद्देश्य सामाजिक एकता लाना, बेढंगे रीति-रिवाजों को खत्म करना तथा प्राचीन धर्म को पुनर्जीवित करना आदि था।
  • 29 अगस्त, 1931 को सरकार द्वारा जदोनांग को फांसी दे दी गई।
  • जदोनांग के बाद इस आंदोलन को 17 वर्षीय नागा महिला गैडिनलियु ने अपना नेतृत्व प्रदान किया।
  • गैडिनलियु ने अपने आदिवासी आंदोलन को गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़ा और समर्थकों को कष्टकारी करों और कानूनों की अवज्ञा करने का आदेश दिया। 
  • जवाहरलाल नेहरू तथा आजाद हिंद फौज (सुभाष चंद्र बोस) ने गैडिनलियु को 'रानी' की उपाधि से सम्मानित किया।
  • रानी ने जदोनांग के धार्मिक विचारों के आधार पर 'हेरकापंथ' की स्थापना की।
  • बिहार और बंगाल में किसानों ने चौकीदारी टैक्स देने के विरोध में आंदोलन चलाया।
  • 'बकाश्त भूमि’ उस भूमि को कहते थे जो मंदी के दिनों में लगान न दे पाने के कारण, किसानों ने जमींदारों को दे दिया था। 
  • इस तरह की भूमि बिहार में पायी जाती थी।

जन आंदोलन (1757–1858 ई० के बीच) स्मरणीय तथ्य

जन आंदोलन (1757–1858 ई० के बीच) स्मरणीय तथ्य

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  • जवाहरलाल नेहरू तथा आजाद हिंद फौज (सुभाष चंद्र बोस) ने गैडिनलियु को 'रानी' की उपाधि से सम्मानित किया।
  • 1828 में असम के अहोम अभिजात वर्ग के लोगों द्वारा अहोम विद्रोह किया गया।
  • खासी जनजाति के लोगों ने सरकार के हस्तक्षेप के विरुद्ध राजा वीर सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। 
  • 19वीं शताब्दी में हुए वहाबी आंदोलन को 1857 ई० में हुए विद्रोह की तुलना में अधिक सुनियोजित, सुसंगठित और एकजुट माना जाता है। 
  • आदिवासी नेता बिरसा मुण्डा को ईश्वर का अवतार और जगतपिता माना जाता था, इसे 'उलगुलान' भी कहा जाता था।
  • महाराष्ट्र, मध्यप्रांत और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में बने कानूनों के विरुद्ध जंगल सत्याग्रह चलाया गया।
  • बिहार और बंगाल में किसानों ने 'चौकीदारी टैक्स' न देने का आंदोलन चलाया।


 विद्रोह                                            नेता 

खोंड विद्रोह        चक्र विसोई, राणा कृष्ण दण्डसेन

संथाल विद्रोह      सिद्धू तथा कान्हू

पागलपंथी विद्रोह         टीपू

वहाबी विद्रोह        सैय्यद अहमद, अब्दुल वहाब

कूका विद्रोह          भगत जवाहरमल, रामसिंह

रामोसी विद्रोह       उमा जी 

मुण्डा विद्रोह          बिरसा मुण्डा

ताना भागत आन्दोलन   जतरा भगत, बलराम भगत

रम्पा विद्रोह            अल्लूरी सीताराम राजू

खासी विद्रोह          सरदार तीरत सिंह

फकीर विद्रोह         मजनूशाह, चिरागअली शाह  

नागा विद्रोह            रानी गैडिनलियु

चेंचू आदिवासी आंदोलन     मोतीलाल तेजावत



भारत में शिक्षा का विकास (ब्रिटिश काल में)

ताना भगत आंदोलन, चेंचू आंदोलन, रम्पा विद्रोह, वन या जंगल सत्याग्रह

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  • ताना भगत आंदोलन को भगत आंदोलन इसलिए कहा गया क्योंकि इसका नेतृत्व आदिवासियों के बीच के उन लोगों ने किया जो 'फकीर या धर्माचार्य' थे। 
  • ताना भगत आंदोलन की शुरुआत द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद छोटा नागपुर (बिहार) में हुई थी। 
  • यह आंदोलन एक प्रकार से संस्कृतीकरण आंदोलन था। 
  • इन आदिवासी आंदोलनकारियों के बीच गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने अपने रचनात्मक कार्यों के साथ घुसपैठ की। 
  • 1920 के दशक में ताना भगतों ने कांग्रेस के नेतृत्व में शराब की दुकानों पर धरना देकर सत्याग्रह और प्रदर्शनों में हिस्सा लेकर भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। 
  • इस आंदोलन को जतराभगत, बलराम भगत, देवमेनिया भगत (महिला) ने अपना नेतृत्व प्रदान किया। 
  • जतरा भगत ने लगान की दरों में ऊंची वृद्धि और चौकीदारी कर के विरुद्ध भी आंदोलन किया।

चेंचू आंदोलन (1920 ई०) 

  • चेंचू आंदोलन 1920 ई० में आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में असहयोग आंदोलन के समय शक्तिशाली जंगल सत्याग्रह के रूप में शुरू हुआ।
  • चेंचू आदिवासी आंदोलनकारियों ने वेंकट्टपय्या जैसे नेताओं से सम्पर्क स्थापित किया। 
  • दिसम्बर, 1927 में गांधी जी ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया।
  • 1921-22 में मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में भील विद्रोह ने उग्र रूप धारण कर लिया, कांग्रेस ने इस विद्रोह से अपने रिश्ते की बात को नकार दिया। 
  • फरवरी 1922 में बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में संथालों ने गांधी टोपी पहन कर पुलिस पर हमला बोल दिया।

रम्पा विद्रोह (1922-24 ई०) 

  • 1922-24 के बीच रम्पा विद्रोह आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के उत्तर में स्थित 'रम्पा' क्षेत्र में हुआ था। 
  • आदिवासियों का यह विद्रोह साहूकारों के शोषण और वन कानूनों के विरुद्ध हुआ।
  • रम्पा विद्रोह के नेता अल्लूरी सीताराम राजू थे जो गैर आदिवासी नेता थे, इन्होंने जयोतिषीय और शारीरिक उपचार सम्बन्धी विशेष शक्तियों से युक्त होने का दावा किया।
  • सीताराम राजू को गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरणा प्राप्त हुई, लेकिन ये आदिवासी कल्याण हेतु हिंसा को आवश्यक समझते थे। 
  • 1924 में सीताराम राजू की हत्या कर विद्रोह को कुचल दिया गया।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय कई स्थानों पर आदिवासियों द्वारा 'वन सत्याग्रह' किया गया क्योंकि इस समय तक राष्ट्रवादियों और आदिवासी समूह के लोगों में घनिष्ठ सम्बन्ध कायम हो चुके थे। 

वन या जंगल सत्याग्रह 

  • वन या जंगल सत्याग्रह मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्यप्रांत, कर्नाटक के गरीब आदिवासी किसानों द्वारा चलाया गया था। 
  • वन सत्याग्रह के दौरान गंजन कोई जैसे नेताओं ने लगान न अदा करने के लिए अभियान चलाया।

सीमांत आदिवासियों के विद्रोह, खासी विद्रोह, अहोम विद्रोह, नागा विद्रोह

मुण्डा विद्रोह (1893-1900 ई०), किद्दूर चेन्नम्मा विद्रोह (1824-29 ई०)

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  • मुण्डा विद्रोह 1893-1900 ई० के बीच बिरसा मुण्डा के नेतृत्व में हुआ था।
  • यह विद्रोह इस अवधि का सर्वाधिक चर्चित आदिवासी विद्रोह था। 
  • मुण्डों की पारम्परिक भूमि व्यवस्था 'खूंटकट्टी या मुंडारी' का जमींदारी या व्यक्तिगत भूस्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था में परिवर्तन के विरुद्ध मुण्डा विद्रोह की शुरुआत हुई। 
  • कालांतर में बिरसा मुंडा ने इसे धार्मिक-राजनीतिक आंदोलन का रूप प्रदान कर दिया। 
  • 1895 में बिरसा ने अपने को 'भगवान का दूत' घोषित किया और हजारों मुण्डाओं का नेता बन गया। 
  • बिरसा मुण्डा को 'उलगुलान' (महान हलचल) और इनके विद्रोह को 'उल्गुलन' (महा विद्रोह) के नाम से जाना गया।
  • बिरसा मुण्डा ने कहा कि “दिकुओं (गैर आदिवासी) से हमारी लड़ाई होगी और उनके खून से जमीन इस तरह लाल होगी जैसे लाल झंडा।"
  • 1900 ई० के प्रारम्भ में बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया जहाँ जेल में ही उसकी मृत्यु हो गई।
  • कुंवर सुरेश सिंह द्वारा तीन चरणों में विभाजित आदिवासी आंदोलन का तृतीय चरण 1920 ई० के बाद शुरु हुआ। 
  • इस चरण के आंदोलनों के नेतृत्वकर्ता को शिक्षित होने का सौभाग्य मिला था।
  • इस समय के आंदोलन को जातीय अथवा सांस्कृतिक आंदोलन, सुधार अथवा संस्कृतिकरण आंदोलन, कृषक और वन आधारित आंदोलन तथा राजनीतिक आंदोलन में बांटा जा सकता है।
  • इस समय हुए आदिवासी आंदोलन के नेता गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर अल्लूरी सीताराम राजू जैसे गैर आदिवासी बने।

किद्दूर चेन्नम्मा विद्रोह 1824-29 
  • किद्दूर चेन्नम्मा विद्रोह 1824-29 के दौरान हुआ था।
  • किट्टूर (कर्नाटक) के स्थानीय शासक की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उसके उत्तराधिकारी को मान्यता नहीं दिया, फलस्वरूप दिवंगत राजा की विधवा चेन्नम्मा ने रामप्पा की सहायता से विद्रोह कर दिया।
  • 1835 में गंजाम के गुमसुर क्षेत्र के जमींदार धनंजय भांजा ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। 
  • धार राव के बुन्द का विद्रोह - 1840-41 में सतारा के राजा प्रताप सिंह को अंग्रेजों द्वारा अपदस्थ करने के विरुद्ध हुआ कराड़ के धार राव ने सबसे पहले विद्रोह का नेतृत्व किया।
  • बुंदेला विद्रोह - इसके अन्तर्गत 1846-47 में कुरनूल के बेदखल किये गये पॉलीगर नरसिम्हा रेड्डी को सरकार द्वारा जब्त की गई पेंशन देने से मना करने पर उन्होंने विद्रोह कर दिया।
  • पालीगर तमिलनाडु के वे जमींदार थे जो हथियार बंद दस्ते रखते थे।
  • पाइक विद्रोह - 1904 ई० में उड़ीसा के खुर्दा नामक स्थान पर हुआ। 
  • इस विद्रोह को खुर्दा के राजा ने पाइकों के सहयोग से संगठित किया।
  • 'पाइक' लगान मुक्त भूमि का उपयोग करने वाले सैनिक थे। 
  • पाइक नेता जगबंधु के नेतृत्व में पाइक विद्रोहियों ने अंग्रेजी सेना को पराजित कर पुरी पर अधिकार कर लिया था।

ताना भगत आंदोलन, चेंचू आंदोलन, रम्पा विद्रोह, वन या जंगल सत्याग्रह

संथाल विद्रोह (1855-56 ई०), खारवाड़ विद्रोह, भील विद्रोह, नैकदा आंदोलन, कोया विद्रोह

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  • संथाल विद्रोह 1855-56 ई० में हुआ।
  • यह विद्रोह संथाल आदिवासियों का विद्रोह था।
  • यह विद्रोह मुख्यत: भागलपुर से राजमहल के बीच केन्द्रित था।
  • आदिवासी विद्रोहों में यह विद्रोह सर्वाधिक जबरदस्त विद्रोह था।
  • संथाल लोगों ने भूमिकर अधिकारियों के हांथों दुर्व्यवहार, पुलिस के दमन, जमींदारों साहूकारों की वसूलियों के विरुद्ध अपना रोष प्रकट करते हुए विद्रोह कर दिया।
  • संथाल विद्रोह को सिद्धू और कान्हू नामक दो संथालों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया। 
  • इस समय गैर आदिवासियों को जो आदिवासियों के क्षेत्र में प्रवेश कर उनके साथ दुर्व्यवहार किया करते थे को 'दिकनाम' से सम्बोधित किया गया।
  • सरकार को संथालों के विद्रोह को कुचलने के लिए उपद्रव ग्रस्त क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाना पड़ा तथा इनके विद्रोही नेताओं को पकड़ने के लिए दस हजार का इनाम घोषित किया गया।
  • सिद्धू, कान्हू ने घोषणा की कि ठाकुर जी (भगवान) ने उन्हें आदेश दिया है कि वे आजादी के लिए अब हथियार उठा लें।
  • सिद्धू अगस्त 1855 तथा कान्हू फरवरी 1886 में पकड़ा गया और मार दिया गया। 
  • कुंवर सुरेश सिंह द्वारा तीन चरणों में विभाजित आदिवासी विद्रोह का द्वितीय चरण 1860 से 1920 तक चला इस चरण के दौरान आदिवासियों ने तथाकथित अलगाववादी आंदोलन ही शुरू नहीं किया बल्कि राष्ट्रवादी तथा किसान आंदोलनों में भी हिस्सा लिया।
  • द्वितीय चरण के आदिवासी या जनजातीय विद्रोहों में प्रमुख इस प्रकार थे।

खारवाड़ विद्रोह

  • खारवाड़ विद्रोह संथालों के विद्रोह के दमन के बाद 1870 में प्रारम्भ हुआ।
  • यह विद्रोह भू-राजस्व बंदोबस्त व्यवस्था के विरुद्ध हुआ।

भील विद्रोह

  • भील विद्रोह राजस्थान के बांसवारा, सूंठ और डूंगरपुर क्षेत्रों के भीलों द्वारा गोविन्द गुरु के सुधारों (बंधुआ मजदूरी से सम्बन्धित) से प्रेरित होकर विद्रोह किया गया।
  • 1913 तक यह आंदोलन इतना शक्तिशाली हो गया कि विद्रोहियों ने 'भील राज' की स्थापना हेतु प्रयास शुरु कर दिया, ब्रिटिश सेना ने काफी प्रयास के बाद विद्रोह को कुचला।

नैकदा आंदोलन 

  • नैकदा विद्रोह मध्य प्रदेश और गुजरात में बनवासी नैकदा आदिवासियों द्वारा चलाया गया। 
  • इन आंदोलनकारियों ने अंग्रेज अधिकारियों और सवर्ण हिन्दुओं के विरुद्ध दैवीय शक्तियों से युक्त अपने नेताओं के नेतृत्व में ‘धर्म राज' स्थापित करने की दिशा में प्रयास किया।

कोया विद्रोह

  • कोया विद्रोह आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी क्षेत्र से शुरू हुआ था और इसने उड़ीसा के मल्कागिरी क्षेत्र को भी प्रभावित किया। 
  • कोया विद्रोह का केन्द्र बिन्दु चोडवरम् का 'रम्पा प्रदेश' था। 
  • 1879-80 में कोया विद्रोह को टोम्मा सोरा ने नेतृत्व प्रदान किया। 
  • कोया विद्रोह जंगलों में उनके पारम्परिक अधिकारों को समाप्त करने, पुलिस द्वारा उत्पीड़न, साहूकारों द्वारा शोषण, ताड़ी के उत्पादन पर कर आदि के विरोध में हुआ।
  • कोया विद्रोह के दमन के लिए अंग्रेजी सरकार ने मद्रास इनफैन्ट्री के छह रेजिमेंट का सहयोग लिया था।
  • 1886 में कोया विद्रोहियों ने राजा अनन्तश्य्यार के नेतृत्व में रामसंडु (राम की सेना) का गठन कर जयपुर के तत्कालीन शासक से अंग्रेजी राज्य को पलटने के लिए सहायता मांगी। 

मुण्डा विद्रोह (1893-1900 ई०), किद्दूर चेन्नम्मा विद्रोह (1824-29 ई०)


जनजातीय (आदिवासी) विद्रोह, पहाड़िया विद्रोह, खोंड विद्रोह, कोल विद्रोह

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  • 19वीं सदी में भारत के अनेक हिस्सों में रहने वाले आदिवासियों ने संगठित होकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध कई छापामार युद्ध लड़े। 
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के आदिवासी आंदोलन अन्य आंदोलनों से इस दृष्टि से भिन्न थे क्योंकि ये अत्यधिक हिंसक और संगठित थे, आदिवासियों की एकजुटता प्रशंसनीय थी, एक आदिवासी दूसरे आदिवासी पर कभी आक्रमण नहीं करता था। 
  • आदिवासियों ने अपने को वर्ग के आधार पर संगठित कर जातीय आधार पर जैसे सांचाल, कोल, मुंडा के रूप में संगठित किया था।
  • आमतौर पर आदिवासी, शेष समाज से अपने को अलग-थलग रखते थे, उनकी आजीविका का साधन झूम खेती (जगह बदल-बदल कर की जाने वाली खेती) और मत्स्य पालन था। 
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक घेरे में आने के बाद ये अपनी ही जमीन पर कृषि मजदूर बन गये और उन्हें खानों, बागानों और फैक्ट्रियों में कार्य करने के लिए तथा कुलीगीरी करने के लिए विवश किया गया।
  • जनजातीय या आदिवासी आंदोलन के प्रमुख कारण इस प्रकार थे- 

1. सरकार ने आदिवासी कबीलों के सरदारों को जमींदार का दर्जा प्रदान कर एवं लगान की नई पद्धति लागू कर उनकी परम्पराओं को कमजोर किया। 

2. आदिवासियों के बीच महाजनों, व्यापारियों और लगान वसूल करने वाले ऐसे समूह को लादा गया जो बिचौलिये की भूमिका में थे।

3. वन क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण कठोर करने, ईंधन और पशुचारे के रूप में वन के प्रयोग पर प्रतिबंध तथा झूम और पड़ खेती पर रोक।

4. आदिवासी क्षेत्रों में सरकार द्वारा ईसाई मिशनरियों की घुसपैठ कराना।

  • उपर्युक्त कारणों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आदिवासियों को विद्रोह करने के लिए विवश किया।
  • कुंवर सुरेश सिंह द्वारा आदिवासी आंदोलन को तीन चरणों में विभाजित किया गया है। ये तीन चरण इस प्रकार हैं-
  • प्रथम चरण -  1795 - 1860 
  • द्वितीय चरण -  1860 - 1920
  • तृतीय चरण -  1920 के बाद
  • विद्रोह का प्रथम चरण अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना के साथ शुरू हुआ, जो अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों के क्षेत्रों में घुसने तथा वहां सुधार कार्यों की शुरुआत करने के विरुद्ध शुरू हुआ।
  • इस समय आदिवासियों के आंदोलन का स्वरूप प्राय: पहले की व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना था।
  • इन आंदोलनों को उन लोगों ने नेतृत्व प्रदान किया जिनकी विशेष स्थिति को ब्रिटिश उपनिवेशीकरण के द्वारा क्षति पहुंची थी। 
  • कुंवर सुरेश सिंह द्वारा तीन भागों में विभाजित आदिवासी आंदोलन के प्रथम चरण के कुछ प्रमुख आंदोलन इस प्रकार हैं-
पहाड़िया विद्रोह 
  • पहाड़िया विद्रोह राजमहल की पहाड़ियों में स्थित उन जनजातियों का विद्रोह था जिनके क्षेत्रों में अंग्रेजों ने हस्तक्षेप किया था। 
  • 1778 में इनके खूनी संघर्ष से परेशान अंग्रेज सरकार ने समझौता करके इनके क्षेत्र को 'दामनी कोल' क्षेत्र घोषित किया। 

खोंड विद्रोह (1837-1856 ई०)
  • खोंड विद्रोह में हिस्सा लेने वाले खोंड जनजाति के लोगों ने 1837 से 1856 के बीच ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया था।
  • खोंड विद्रोह में हिस्सा लेने वाले खोंड जनजाति के लोग तमिलनाडु से लेकर बंगाल और मध्य भारत तक फैले हुए थे।
  • खोंड लोगों के विद्रोह का कारण था सरकार द्वारा नये करों को लगाना, उनके क्षेत्रों में जमींदारों और साहूकारों का प्रवेश तथा मानव जाति पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाना आदि। 
  • खोंड विद्रोह को चक्र विसोई ने नेतृत्व प्रदान किया। 
  • कालांतर में राधाकृष्ण दण्डसेन ने भी विद्रोह में सिरकत की।

कोल विद्रोह (1832-37 ई०)
  • कोल विद्रोह 1832–37 तक चलता रहा।
  • कोल विद्रोह रांची, सिंहभूमि, हजारीबाग, पालामऊ और मानभूम के पश्चिमी क्षेत्रों में फैला था।
  • इस विद्रोह का कारण था आदिवासियों की भूमि को उनके मुखिया मुण्डों से छीनकर मुसलमान तथा सिक्ख किसानों को दे देना। 

संथाल विद्रोह (1855-56 ई०), खारवाड़ विद्रोह, भील विद्रोह, नैकदा आंदोलन, कोया विद्रोह, मुण्डा विद्रोह

मंगलवार, 28 जनवरी 2025

कूका आंदोलन (1860-70 ई०), रामोसी विद्रोह, गडकारी विद्रोह, बेलुटंपी विद्रोह

Pariksha Pointer

 

  • पश्चिमी पंजाब में कूका आंदोलन की शुरुआत भगत जवाहरमल के नेतृत्व में हुआ। 
  • कूका आंदोलन भी प्रारम्भ में धार्मिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन शीघ्र ही यह राजनीतिक आंदोलन में बदल गया। 
  • सियान साहब के नाम से चर्चित जवाहरमल ने कूका आंदोलन की शुरुआत सिख पंथ में व्याप्त अंध विश्वास और बुराईयों को दूर करने के लिए किया। 
  • जवाहरमल के शिष्य बालक सिंह ने अपने अनुयायियों के साथ अपना मुख्यालय उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में स्थित 'हजारी' नामक स्थान को बनाया।
  • कूका आंदोलन ने कालांतर में पंजाब से अंग्रेजों का प्रभुत्व समाप्त कर सिख प्रभुसत्ता की स्थापना को अपना लक्ष्य बनाया। 
  • इस आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने 1863-72 में जोरदार अभियान चलाया।
  • कूका आंदोलन के नेता रामसिंह कूका को सरकार ने रंगून निर्वासित कर दिया जहां उनकी 1885 में मृत्यु हो गई।
  • अपदस्थ शासकों के आश्रितों द्वारा किये जाने वाले आंदोलनों में प्रमुख थे- रामोसी विद्रोह, गडकारी विद्रोह, सामंतवादी विद्रोह आदि।

रामोसी विद्रोह (1822 ई०)

  • रामोसी विद्रोह 1822 ई० में शुरू हुआ था।
  • इस विद्रोह में कभी मराठा सेना में सैनिक और सिपाही के रूप में कार्यरत मराठों ने मराठा साम्राज्य के पतन के बाद बढ़े हुए भूमि कर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
  • 1822 में रामोसियों ने महाराष्ट्र के सतारा क्षेत्र में लूटपाट की। 
  • 1825-26 पड़े भयानक अकाल और अन्नाभाव के कारण रामोसियों ने उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह कर दिया।
  • ब्रिटिश सरकार ने रामोसियों के विद्रोह को समाप्त करने के लिए उन्हें भूमि अनुदान दिया, साथ में ही पहाड़ी पुलिस में नौकरी भी दी।

गडकारी विद्रोह (1844 ई०) 

  • गडकारी विद्रोह 1844 ई० में कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में हुआ। 
  • गडकारी वे लोग थे जो मराठों के किलों में कार्यरत अनुवांशिक कर्मचारी थे।
  • गडकारियों ने बढ़े हुए भू-राजस्व की वसूली के विरुद्ध विद्रोह किया था, सरकार को गडकारियों के विद्रोह को दबाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।
  • 1844 ई० में शुरु हुए सामंतवादी विद्रोह का नेता मराठा सरदार फोन्ड सावंत था। 
  • इन्होंने अन्य सरदारों और ईसाइयों जिसमें अन्नासाहिब भी शामिल थे, के सहयोग से दक्षिण भारत के अनेक किलों पर पुनः कब्जा कर लिया, लेकिन शीघ्र ही सरकार ने विद्रोह को कुचल दिया। 
  • उन्नीसवीं सदी में कुछ अपदस्थ भारतीय शासकों ने अंग्रेजों की विलय नीति, भारतीय शासकों को मनमाने ढंग से अपदस्थ करने तथा अंग्रेजी शासन की नीतियों के विरुद्ध आंदोलन किया।

बेलुटंपी विद्रोह (1808-9 ई०)

  • बेलुटंपी विद्रोह 1808-9 में त्रावणकोर (केरल) में हुआ। 
  • अंग्रेजों द्वारा दीवान बेलुटंपी (त्रावणकोर) की गद्दी छीन लेने तथा सहायक संधि द्वारा त्रावणकोण राज्य पर भारी वित्तीय बोझ डालने के कारण दीवान बेलुटंपी ने विद्रोह कर दिया। 
  • गोलियों से घायल बेलुटंपी की मृत्यु के बाद अंग्रेजी सेना ने उसे सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया था।

जनजातीय (आदिवासी) विद्रोह, पहाड़िया विद्रोह, खोंड विद्रोह, कोल विद्रोह 

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